डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का साहित्य
सुचना: यहाँ डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर के उस साहित्य को पाठकों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है, जो समूचे देश के लिए पठनीय है। इस साहित्य का समावेश अब तक स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में शामिल होना चाहिए था। सरकारी वर्ग ने बड़े ही बेमन से इस साहित्य के प्रकाशन की ज़िम्मेदारी लेकर इस साहित्य को लोगों से साझा तो किया है, पर वैसा करते हुए भी वे साहित्य का सटीक नाम निर्देशन करने में चुकें है। पर शुक्र है की, ये साहित्य अब जाके धीरे धीरे तैयार हो रहा है, जब आझादी को पुरे ७७ साल पुरे हुए है। ये साहित्य पुरे देश के लिए अभ्यास का विषय है, क्योंकि ये देश के संविधान निर्माता के द्वारा आया है, जिनके लिखें संविधान के भरोसे आज हम आझादी का अमृत महोत्सव मनाने के व्यर्थ प्रयास करते है, जब के आज भी मुझ जैसे लोग समाज के विरले शिक्षित और कामकाजी (O-) होकर भी हाथ से गन्दी नालियों को साफ़ करने का काम करते है। क्योंकि यहाँ की व्यवस्था नालियों के लिए काम नहीं करती है। गंदगी और अव्यवस्था के लिए काम नहीं करती है। संविधान के अनुरूप आचरण का बहाना करते सरकारी कर्मचारीगण, अधिकारी वर्ग, लोक प्रतिनिधियों और आम जनता ने यहाँ सिर्फ़ अपना पेट पालने के लिए अबतक संविधान का इस्तेमाल किया है। हालांकि ये काम भारत के सरकारी कर्मचारीगण, अधिकारी वर्ग, लोक प्रतिनिधियों और समूची आम जनता का रहा है, की वो सभी प्राचीन, अर्वाचीन और आधुनिक सभी प्रकार की बौद्धिक विकास को अवरुद्ध करती नालियों को अब तक मिलकर साफ़ कर लेते, पर ऐसा ना हुआ है। क्योंकि कमाई करने में व्यस्त हुआ भारतीय ऐसा नहीं करना चाहता। संविधान निर्माता ने अपने उच्च कोटि के अभ्यास के साथ देश का इतिहास खंगाल कर देश के भविष्य की सही दिशा को निश्चित करते संविधान के अनुरूप आचरण करनेवाले सरकारी कर्मचारीगण, अधिकारी वर्ग, लोक प्रतिनिधियों और आम जनता, सभी को कुछ महत्वपूर्ण सुझाव पहले ही दिए रहें है। देश के सभी लोगों के समग्र और समन्वयक विकास के लिए अधिकारों के साथ कर्तव्यों को भी निर्देशित किया है। भारतीयों ने अपने अधिकारों को तो संविधान के भरोसे बड़े ही जल्दबाजी में हासिल किया है, पर उतने ही जल्दबाजी में वे अपने कर्तव्यों को पूरा करना भूलें है। देश के लिए ‘आवश्यक सफ़ाईकर्म’ करना भूलें है। ये भूल अक्षम्य है। अखंड भारत का सपना देखनेवाले लोगों को बड़ें ही जल्द अपने भारत का प्रखंड स्तर विकास अधुरा रखते समूचे भारत को खंड खंड होते देखना या फिर उससे भी बड़ी नैसर्गिक आपदा को देखना पड़ सकता है। इसलिए आवश्यक है की, डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर से जुड़ा ये साहित्य संपूर्ण भारतीयों को पढ़ना चाहिए। देश की शिक्षा विभाग को इस साहित्य को स्कूली शिक्षा में अवश्य शामिल करना चाहिए। ये ज़रूरी है। देशहित में काम करते हर व्यक्ति को इस साहित्य को पढ़ना चाहिए। क्योंकि ये देश के सुनहरें भविष्य का सवाल है।- एम. डी. हिरेखन।